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सुख-दुःख अच्छा है / अनुभूति गुप्ता
Kavita Kosh से
कठिन से कठिन
दिनों में भी
झरोखें से झाँकती
कोमल किरनें हैं सुख।
पिघलते हुए
दिनों के चेहरों पर
उभरती झुर्रियों का
गहराना है दुःख।
सुख-दुःख का होना
अच्छा है।
दर्द न हो तो,
इंसान
भूल जाता है
जीवन की दौड़-धूप में
अच्छे दिनों की
खिड़की में झाँकना।
खुशी न हो तो,
इंसान जद्दोजहद
नहीं करता
अहसास भरे पत्थरों को
तराशने की।