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सुख-दुख के संगी हम / कुमार रवींद्र
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सखी, तुम्हारे सँग जीना
आसान रहा
तुमने माँगे नहीं
हाट-बाज़ार कभी
हम दोनों के सपने
साँझे रहे सभी
सुख-दुख के संगी हम
तुमको ध्यान रहा
आँगन में हमने
सूर्यास्त नहीं बोये
धूप-छाँव के मंत्र
नहीं हमने खोये
रहे सँग हम
यह प्रभु का वरदान रहा
थोड़े में हम जिये
नेह भरपूर जिया
दिया देवचौरे का
बुझने नहीं दिया
अपना मन
झूठे सुख से अनजान रहा