सुख-दुख / धनंजय वर्मा

सुख
सरिता का जल
बहता बहाता
बाँधों में बाँधते
रोकते अगोरते हम
क्या बाँध पाते हैं...

दुख स्वयं बाँध
चौहद्दी ज़मीन की
बहना तो दूर की
कीच कांदो पालता है

मन से उमग कर
आत्मा के पंकज उगाता है...

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