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सुख-दुख / रणजीत

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सुख पाया जीवन में काफ़ी
दुख उससे काफ़ी कम पाया
लगता है मेरे दुख का कुछ कोटा अभी शेष है
सुख में कभी नहीं उछला जब
शान्त भाव से मुस्का कर ही उसको भोगा
भुगतूँ मैं अब दु:ख भी उसी शान्त भाव से
यही मनस है, यही इरादा
धन्यवाद दूँ धरती को जीवन को औ’समाज को
जिसने अब तक के मेरे जीवन में
सुख सरसाया, दुख से
कितना कितना ज्यादा।