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सुख का दिन डूबे डूब जाए / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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सुख का दिन डूबे डूबे जाए ।
तुमसे न सहज मन ऊब जाए ।

खुल जाए न मिली गाँठ मन की,
लुट जाए न उठी राशि धन की,
धुल जाए न आन शुभानन की,
सारा जग रूठे रूठ जाए ।

उलटी गति सीधी हो न भले,
प्रति जन की दाल गले न गले,
टाले न बान यह कभी टले,
यह जान जाए तो ख़ूब जाए ।