Last modified on 28 नवम्बर 2010, at 22:57

सुख का दिन डूबे डूब जाए / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

सुख का दिन डूबे डूबे जाए ।
तुमसे न सहज मन ऊब जाए ।

खुल जाए न मिली गाँठ मन की,
लुट जाए न उठी राशि धन की,
धुल जाए न आन शुभानन की,
सारा जग रूठे रूठ जाए ।

उलटी गति सीधी हो न भले,
प्रति जन की दाल गले न गले,
टाले न बान यह कभी टले,
यह जान जाए तो ख़ूब जाए ।