भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुख तो हम तक न आए कभी / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुख तो हम तक न आए कभी
दु:ख हमें छू न पाए कभी

जो न आए बुलाने के बाद
आ गए बिन बुलाए कभी

धूप की साँस घुटने लगी
मेघ ऐसे भी छाए कभी

हमसे मिलते ही मुस्काए वो
जो नहीं मुस्कुराए कभी

जिनसे रिश्ते बने ही नहीं
उनसे रिश्ते निभाए कभी

आ गए काम एकान्त में
अश्रु थे जो बचाए कभी

जिनकी हमसे न उम्मीद थी
काम वो कर दिखाए कभी