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सुख दुख बराबर / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
पत्नी पति पर, पति पत्नी पर
एक दोसरोॅ पर निर्भर छै।
जबताँय साथ चलै छै दोनों
तब ताँय सुखद जीवित निर्झर छै।
मिलन बिछुड़न दोनों लेल सम छै,
सुख दुःख में अन्तर कुछ नैं छै।
विरह ताप दोनों लेल भारी
शान्ति मिलै मनतर कोय नैं छै।
लोक लाज सेॅ दोनोॅ पीड़ित,
मोॅन रॅ बात केकरा सें कहतै!
भीतरे भीतर हकरै छै दोनों
केकरा कहतै तारा गिनतै?
बड़ा कश्टकर जीना छै जी!
बड़ा कश्टकर मरना छै जी
हँसना भी भारी मुश्किल छै।
रोना भी भारी मुश्किल छै।
तोहीं बताब है रंग जीवन,
केकरा अच्छा लागतै जी?
मुदा भाग्य मेॅ जे लिखलॅ छै।
ओकरा कौनेॅ मेटतै जी?
26/07/15 रात्रिः 8.10 बजे