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सुख ने अपनी जगह बदली / अशोक वाजपेयी

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जहाँ-जहाँ सुख है
उसके तन में
उसके मन में
वहाँ-वहाँ
उसने उसे छुआ।

अपने अंगों से
अपनी देह से
अपने शब्दों से
अपने मन से।

छूने में सुख था
छुए जाने में सुख था
नहीं था अनछुए रहने
रहने देने में--
सुख ने अपनी जगह बदली
फिर भी वहीं रहा
जहाँ पहले था-
तन में, मन में।

रचनाकाल : 1989