भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुख / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


घर की छत पर
धूल-धक्‍कड़ के अटते ही
पिता साफ-सफाई में
जुट जाते थे

गुजरते लोगों की
आंखों के सुख के लिए

वे बारिश का इंतजार नहीं करते थे