सुगना मुण्डा की बेटी-6 / अनुज लुगुन
सुगना मुण्डा की बेटी
जो भी हो
सात कथा, सात जीवन निर्णायक होगा
अस्मिता का उत्कर्ष होगा
या, उसके पुरातत्व का
आगामी इतिहास परिचायक होगा।’
सात कथा और सात जीवन के साथ
सातों जन डोडे वैद्य के सामने प्रत्यक्ष थे
रोग के कारक और निदान का
उसने शुरू किया विश्लेषण
कहा —
‘सात कथा, सात जीवन अभिन्न हैं
सूत्र एक-दूसरे के गुँथे हैं आपस में
एक के बिना दूसरे का अस्तित्व सम्भव नहीं है
गुरुत्वाकर्षण का केन्द्र एक ही है —
श्रम और उत्पादन पर नियन्त्रण,
श्रम की सामूहिकता
और सहजीविता के तिरस्कार ने
जन्मे हैं महामारी और कुप्रथा
ज्यों-ज्यों बढ़ी है अतिरिक्त की लालसा
बढ़ा है श्रम का शोषण
बढ़े हैं जगत में देवताओं और अवतारों की संख्या
पूँजी ने जन्मे हैं फिर से नए अवतार,
तुमने जो कुछ भी देखा
नहीं था वह श्रम और पूँजी से एकाँगी,
सुनो, दिकू दुनिया से
अलग रही है
हमारी सहजीवी व्यवस्था
श्रम के शोषण के नहीं
उसकी सामूहिकता के कर्णधार रहे हैं हम
नहीं बनाए हमने किले
नहीं बनाया कोई राजमहल
कला को भी हमने जिया है
श्रम में, सामूहिकता में,
कभी नहीं रही है हमारी दुनिया
कलाहीन और शोषण के पँजों से कुरूप
लेकिन हम रहे हैं एक द्वीप की तरह
ज्यों-ज्यों द्वीप में घुसती गई
समुद्र की बेलगाम लहरें
हमारे अन्दर फैलने लगे सत्ता के विषाणु
हमारी अस्मिता और अस्तित्व के जड़
हमारे अन्दर से भी कटने लगे
चानर-बानर और उलट्बग्घा
हमारे अन्दर से ही बनने लगे,
फिर कुछ देर लम्बी साँस लेकर
सबको उम्मीद भरी नज़रों से देखने के बाद
डोडे वैद्य ने कहा —
‘हम एक द्वीप के अन्दर ही रहे
सहजीवी जीवन के लिए
हमारा ही विस्तार होना चाहिए था
जो नहीं हो सका
अब जो उपचार होगा
रोगों के निदान का
महामारियों से मुक्ति का
उसका रास्ता भी यही होगा
इसी रास्ते है
मनुष्य और उसके सहचरों की दीर्घ मुक्ति
और इसके लिए जोड़ना होगा सम्बन्ध
द्वीप के बाहर भी
सहधर्मी सँघर्षरत शक्तियों के साथ
सबको होना होगा
जन-संस्कृति का उद्धारक
जनवाद का समर्थक,
चुप रहे, शान्त रहे, मौन रहे
सुनते रहे, गुनते रहे, धुनते रहे
सात जन, सात कथा, सात जीवन,
हज़ारों सदियों से संचित चिन्ता थी
अनुभव भी था, ज्ञान भी था
डोडे वैद्य ने फिर कहना शुरू किया —
‘दण्डकारण्य केवल दण्डकारण्य नहीं है
अबूझमाड़ की ध्वनियाँ अबूझ नहीं हैं
वह एक गीत है, रूपक है, दर्शन है
वह डूम्बारी बुरु है, सेरेंगसिया है
वह मानगढ़ है, भूमकाल है
अमेजन है, सारण्डा है,
यहाँ जो आदमख़ोर पहुँचा है
वह जानवर है
जानवर नर है, पुरुष है, पुलिंग है
पितृसत्ता का प्रवक्ता
सेना, पुलिस, व्यवस्था का स्वरूप,
कितनी ही युवतियाँ थीं
जो शिकार बनाई गईं
उनकी देह की गन्ध को
अभी महुए में घुलना बाक़ी था
महुआ के खिलने से पहले ही
उसे पाला मार गया
यहाँ बच्चे, बूढ़े, औरत
और सभी सहजीवी तो मारे गए हैं
पितृसत्ता के उस प्रवक्ता के द्वारा,
ज़मीन चाहिए तो सेना बुलाओ
नदी चाहिए तो सेना बुलाओ
जंगल चाहिए तो सेना बुलाओ
फूल चाहिए तो सेना बुलाओ
जुगनू चाहिए तो सेना बुलाओ
इतना सैन्य सँगठित है वह
कि स्त्री के गुप्ताँगों तक में
वह अपनी सत्ता ठोंकता है
इतना चालाक है कि
वह स्त्रीलिंगों का करता है
पुल्लिँग रूपान्तरण
पितृसत्ता का प्रचारक,
सभी सत्ताओं का उद्गम,
उन पहाड़ी दरख़्तों को देखो
जो अब तक भालुओं,
और खरगोशों की ओट से पवित्र था
उन्हें विस्थापित करता हुआ
उसी ओट से
उसे अपवित्र करता हुआ
दाख़िल हो चुका है
वह आदमख़ोर
हमारी सहजीवी दुनिया में
हर गाँव जो
‘वैश्विक ग्राम’ की
सन्धि-पत्रों से असहमत होगा
वह दण्डकारण्य होगा
और जहाँ अरण्य होगा
वहाँ बाघ का हमला होगा’,
फिर सात कथा सात जीवन की साक्षी
सुगना मुण्डा की बेटी को
सम्बोधित कर कहा —
‘बिरसी!
तुम ही होगी
गितिः ओड़ाः की गोमके
धुमकुड़िया की धाँगरिन
तुम्हारे ही कन्धों पर होगा
नई पीढ़ी का उत्सव
नए युग का उद्घोष,
तुम बिरसी हो
सुगना मुण्डा की बेटी
तुम हो प्रवर्तक, प्रतिनिधि, नेत्री
समता की
सहजीविता की
यहाँ रूपक में हैं मुण्डा
रूपक में हैं सब चेहरे
रूपक में ही तुम खड़ी हो
रूपक में ही हैं तुम्हारे शत्रु
रूपक ही होगा तुम्हारा प्रतिरोध
तुम्हारी आवाज़
केवल जल, जंगल, ज़मीन तक नहीं जाती है
हर बार तुम्हारी आवाज़ से
उभरा है सहजीविता का रूप
इसी स्वरूप के साथ करना होगा जन-मुक्ति का सँघर्ष,
तुम हो बिरसी!
तुम हो बेटी!
तुम हो गोमके!
तुम हो नेत्री!
तुम हो आदिवासी गणतन्त्र की प्रहरिका!
पितृसत्ता के विरुद्ध
मातृसत्ता की मजबूत अवशेष!
सभ्यता की समीक्षक!
सत्ताओं के प्रतिपक्ष की वाहिका!
तुम ही हो
नए सौन्दर्य की आयोजिका!
अब मैं तुम्हें सौंपता हूँ
अपना सम्पूर्ण अनुभव
सम्पूर्ण ज्ञान
सम्पूर्ण सम्वेदना
यह मैं सौंपता हूँ
‘पुरखा छड़ी’ और
बाघों के नियन्त्रण का गीत
तुम्हारे ही नेतृत्व में
होगा अस्मिताओं का उत्कर्ष
तुम्हारे प्रयोगों से ही होगा
साकार जन-मुक्ति का सँघर्ष
जन-संस्कृति होगी
जनवाद होगा
हज़ारों वर्षों से बाधित
सकल सम्वाद होगा
अब तुम्हारा
आवाहन ही बाक़ी है
नई पीढ़ी के लिए
नए युग के लिए
उत्सव के लिए
साधना के लिए
सँघर्ष के लिए
तुम्हारे ही हाथों विश्व को
रचनी होगी मुक्ति-गाथा’’
बिरसी मुड़ी
और राह मुड़ी
सबकुछ सौंप
डोडे वैद्य मुड़े
और मुड़ गया
गुड़ी विद्या का तरीका
अब बाक़ी था
बिरसी का निर्णायक सम्बोधन।
बिरसी उठी
और उसके साथ ही उठा
गितिः ओड़ाः का स्वर,
संस्थागत रूप से इतर अवशेष
जो अब
व्यवहार में ही रह गया था
गितिः ओड़ाः का
धूमकुड़िया का
घोटुल का
आदिवासी गणतान्त्रिक व्यवस्था का,
साथ ही उठा स्वर नए स्वरूप में
विस्तृत मुक्ति की आकाँक्षा के लिए
बाघों का सामना करने के लिए
बिरसी के सामने
सँघर्ष का जनवादी स्वरूप ही प्रस्तुत था,
अपने साथी सदस्यों की सहमति के साथ ही
नेतृत्वकारी भूमिका में उसने कहा
‘सात कथा सात जीवन का सार
सात पहाड़, सात समुद्र के पार पहुँचे
सहधर्मी सँघर्षशील सँग की खोज हो
मदाईत का आयोजन हो
और सँघर्ष का सन्देश पहुँचे
नगाड़े के स्वर में
उस आदमख़ोर की आहट को टोहने के लिए
नृत्य का स्वभाव बदले’