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सुग्गा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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मीट्ठोॅ बोली बोलै सुग्गा राम,
बोलें रे बुतरू सीता राम।
लाल लाल छै हेकरोॅ ठोर
करतें रहतौं हरदम शोर,
रंग हरा देहोॅ के एकरोॅ
कजरी जैसनौं हरा कचोर।
फुदकी-फुदकी डाल-डाल पर
कुतरी-कुतरी फल खावै के काम,
मीट्ठोॅ बोली बोलै सुग्गा राम।
कŸोॅ सुन्नर लागै ऐकरोॅ लोल
थिरकै हरदम करै किलोल,
अगरैलोॅ छै रूपोॅ से भरलोॅ
हरदम बोली-बोलै छै अनमोल।
गोल-गोल मोती रं आँखोॅ में
घूमै पल-पल भगवानोॅ के नाम,
मीट्ठोॅ बोली बोलै सुग्गा राम।
प्यारो सुन्नर देखै में सुग्गा
विरही मन के संदेश सुग्गा,
कटलै जंगल गाछ-बिरिछ सब
देखबोॅ मुश्किल होलै सुग्गा।
धरती कानै की होतै हो राम
मीट्ठोॅ बोली बोलै सुग्गा राम,
धरती के छाती फाटै हो राम।