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सुघर लेखनी हाथ ले, लिखता कवि उद्गार / रंजना वर्मा
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सुघर लेखनी हाथ ले, लिखता कवि उद्गार।
कभी सरसता है जगत, कभी बरसता प्यार॥
पहुँच नहीं सकता कभी, जहाँ चन्द्र दिनमान।
अगम कल्पना क्षेत्र में, कवि नित करे विहार॥
पुष्प सदृश खिलता रहे, पा सुखमय संस्पर्श
अपने निर्मल स्नेह का, कवि नित करे प्रसार॥
प्रति क्षण जीवन युद्ध है, कदम-कदम पर आग
कठिनाई से किन्तु कवि, कभी न माने हार॥
जग पीड़ा से हो व्यथित, नित्य बहाए नीर
अपने ही दुख दर्द का, करे नहीं उपचार॥
स्नेह, प्रेम, उपकार के, दे नित ही सन्देश
कवि की कोमल कलम से, सिंचित हो संसार॥
कवि उर में जागृत रहे, पथदर्शन का चाव।
मृत तन में भी जो करे, प्राणों का संचार॥