भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुघर साँवले पर लुभाए हुए हैं / बिन्दु जी
Kavita Kosh से
सुघर साँवले पर लुभाए हुए हैं।
कि सर्वस्व अपना लुटाये हुए हैं॥
अदा मुस्कराहट चलन और चितवन।
ये मेहमान मन में बसाए हुए हैं।
कृपा की नज़र उनकी कितनी है मुझपे।
कि घर इस जिगर में बनाए हुए हैं।
न भूलेगा अहसान उनका मेरा दिल।
कि नजरों पै इनको चढ़ाये हुए हैं।
दृगों के ये दो ‘बिन्दु’ हैं श्याम इसके।
कि घनश्याम इसमें समाये हुए हैं।