सुणो सबक उस्ताज जी द्यूं साराए सुणा जुबानी / मेहर सिंह
सुणो सबक उस्ताज जी द्यूं साराए सुणा जुबानी।टेक
अलीफ से अजमेर, अटावा, आगरा अम्बाला हो सै
बे से बम्बई बणैं बड़ोदा और बरनाला हो सै
पे से पूना पालमपूर पंजाब और पटियाला हो से
त से तख्ती तीतर तरकश तमाशा तमाम देखो
टे से टेबल टाईम होता टांगा और ट्राम देखो
स से हो सलाद साबुत समर सरे आम देखो
जिम से जिमला जहाज जी जहाँ बतावैं पाणी।
च से चिड़िया चावल चाकू चमचा और चिनाव कहैं
ह से हिस्सा होलिया हाजिर और हबाब कहैं
ख से हो खरगोश खचर, खालीफा खवाब कहैं
दाल से दरमान दस्ता दरवाजा दीवार बनैं
डाल से हो डोल डिब्बा डलिया डोली तैयार बनैं
जाल से जखीरा जर्रा जिगर जमेवार बनैं
रे से राम रह याद जी रग रग में बसी है भवानी।
जे से जुल्फ जेब जेवर जर जबान मैं
सीन से सिलाम सितारे चमकैं जो असमान मैं
सीन से हो शिमला शायद शमां जलती है मकान मैं
स्वाद से सन्दूक साबुन सफाई सदा कथ सही
तोए से हो तो आन तानक तानक और तमीज कहीं
तोए से तोआ ताकर तबला तरज नई-नई
जोए से जुल्म करै कोए बाध जी दे जानत की छोड़ निशानी।
मीम से मदरसा मुल्ला मस्जिद में अजान करै
नून से नजम तैयार नई तो नादान करैं
वाव से हो वेव विधा औलाद इन्सान करै
हे से हिम्मत हारै मत, हाथ से कमाई कर
ये से यारी याद रख यारों की भलाई कर
सोच के नै जाट मेहर सिंह ठीक कविताई कर
रैह सब धन्धों से आजाद जी ये धन धन है जिन्दगानी।