भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुण म्हारा इस्ट! (दोय) / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
ओ म्हारा इस्ट!
क्यूं रळायो म्हनै
इण भीड़ मांय
म्हैं जात अर समाज मांय
फिट नीं हूं।
नीं हूं भायलां अर भायां रै बिचाळै
टाबर अर बूढा-बडेरा
न्यारो मानै म्हनै।
नीं हाय खायनै
बेसकै पड़ूं
म्हारो मिनखपणो
खेचळ करै
थारै अवतारां सागै।
थूं म्हनै जाणै
म्हैं थारी आंख्यां साम्हीं
नीं आवूं अचाणचक,
अेक म्हैं हूं
सवाई राखूं साख थारी
म्हैं बाती बण्योड़ो जोत री
जगमग करूं
थारी आंख्यां साम्हीं।
अबकी अवतार बणावै जद
ठा राखी
इण जोगो तो म्हैं हूं
म्हारा इस्ट...।