सुण सपने का जिकर करूं मै नेता बणग्या भारी / रामधारी खटकड़
सुण सपने का जिकर करूं मै नेता बणग्या भारी
चुनाव जीत कै बण्या मनिस्टर होई हकूमत म्हारी
जवानी म्हं कालेज गया तै पढ़णे म्हं जी लाग्या ना
बदमाशां की रह्या टोली म्हं देख्या पाछा-आगा ना
बहोत घणां समझाया था मैं, बोल मेरे कति लाग्या ना
तरहां-तरहां के खेल-खिलाए भाग मेरा कति जाग्या ना
इब राजनीति म्हं शामिल होग्या सुणो हकीकत सारी
चरण पकड़ कै बडे-बड्यां के उनकी गेल्यां जाण लग्या
बदमाशी छोड्डी छोटी-मोटी बड्डे गुल खिळाण लग्या
नजायज कब्जे मनै कराए माल ओपरा खाण लग्या
सारी ढाळ की ऐश मिली मैं पीवण और पिळाण लग्या
गांधी टोपी खद्दर धारकै अकल देश की मारी
फिर पार्टी का टिकट मिल्या मनै पहले स्कीम बणाई थी
जात-गोत का नारा लाकै माळा खुब घलाई थी
नीची जात की पर्ची तो मनै हांगे गिरवाई थी
बूथां ऊपर करके कब्जा जै-जै कार कराई थी
ऊपर तक जब राज म्हारा था मिली मदद सरकारी
झण्डी आळी कार जब फुल्या नही समाया रै
जितनै यार-सगार फिरै थे उन्हे नौकरी लाया रै
रोज घोटाळे कर करकै मनै पीस्सा खूब कमाया रै
आंख खुली फिर बेरा पाट्टा भूण्डा सपना आया रै
‘रामधारी’ जिसे ऊतां कै या सूत जो की आरी