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सुतलअ जे छेला हे कवन भैया / अंगिका लोकगीत
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
सुतलअ जे छेला हे कवन भैया, उठला छिछिआइ<ref>चिहुँककर</ref>।
हमूँ जे जायछी<ref>जाता हूँ</ref> करे हो रैया, ढोलहो<ref>एक प्रकार का बाजा</ref> के मोल॥1॥
सुतलअ जे छेला हे कवन भैया, उठला छिछिआइ।
हमहूँ जे करबो हे रैया, पालकी के मोल॥2॥
सुतलअ जे छेला हे कवन भैया, उठला छिछिआइ।
हमहूँ जे करबो हे रैया, कपरा<ref>कपड़ा</ref> के मोल॥3॥
सुतलअ जे छेला हे कवन भैया, उठला छिछिआइ।
हमहूँ जे करबअ हे रैया, जूतबा के मोल॥4॥
सुतलअ जे छेला हे कवन भैया, उठला छिछिआइ।
हमहूँ जे करबो हो रैया, सेनुरा के मोल॥5॥
शब्दार्थ
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