सुदामा चरित / नरोत्तमदास / पृष्ठ 6
हूल हियरा मैं सब काननि परी है टेर,
भेंटत सुदामै स्याम चाबि न अघातहीं ।
कहै नरात्तम रिद्धि सिद्धिन में सोर भयो,
डाढी थरहरक और सोचें कमला तहीं ।
नाकलोक नागलोक ओक ओक थोकथोक,
ठाढे थारहरै मुचा सूखे सब गात ही ।
हाल्यो पर्यो थोकन में लाल्यो पर्यो,
चाल्यो पर्यो चौकन में, चाउर चबात ही ।।51।।
भौन भरो पकवान मिठाइन, लोग कहैं निधि हैं सुखमा के ।
साँझ सबेरे पिता अभिलाखत, दाख न चाखत सिंधु छमा के ।
बाँभन एक कोऊ दुखिया सेर-पावैक चाउर लायो समाँ के ।
प्रीति की रीति कहा कहिये, तेहि बैठि चबात हैं कन्त रमा के ।।52।।
मूठी तीसरी भरत ही, रूकुमनि पकरी बाँह ।
ऐसी तुम्हैं कहा भई, सम्पति की अनचाह ।।53।।
कह्यो रूकुमिनी कान मैं, यह धौ कौन मिलाप ।
कहत सुदामहिं आपसों, होत सुदामा आप ।।54।।
यहि कौतुक के समय में , कही सेवकनि आय ।
भई रसोई सिद्ध प्रभु, भोजन करिये आय ।।55।।
थ्वप्र सुदामहिं न्हृाय कर, धोती पहरि बनाय ।
सन्ध्या करि मध्यान्ह की, चौका बैठे जाय ।।56।।
रूपे के रूचिर धार पायस सहित सिता,
सोभा सब जीती जिन सरद के चन्द की ।
दूसरे परोसा भात सोधों सुरभी को घृत,
फूले फूले फुलका प्रफुल्ल दुति मन्द की ।
पपर-मुंगौरी - बरी व्यंजन अनेक भाँति,
देवता बिलोकि छवि देवकी के नन्द की ।
या विधि सुदामा जू को आछे कैं जँवाएँ प्रभु,
पाछै कै पछ्यावरि परोसी आनि कन्द की ।।57।।
दाहिने वबद पढैं चतुरानन, सामुहें ध्यान महेस धर्यो है ।
बाएँ दोऊ कर जोरि सुसेवक, देवन साथ सुरेश खर्यो है ।
एतेई बीच अनेक लिये धन, पायन आय कुबेर पर्यो है ।
छेखि विभौ अपनो सपनो, बपुरो वह बाभन चौंकि पर्यो है ।।58।।
सात दिवस यहि विधि रहे, दिन आदर भाव ।
चित्त चल्यौ घर चलन कौं, ताकर सुनौं बनाव ।।59।।
देनो हुतौ सो दै चुकेए बिप्र न जानी गाथ।
चलती बेर गोपाल जूए कछू न दीन्हौं हाथ ।।60।।