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सुधार कठै ? / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
आज-काळ री छोरयाँ रा
रंग-ढ़ंग देख‘र
छोरा-छंडा ही नीं
बडेरां रो/डेणां रो
मनड़ो भी डोल जावै है
छोरा कैवै है -
‘आ कामणगारी चीज घणी खाटी है’
बडेरा थोड़ी मरजादा निभावै है
खनलैं नै पूछै .....
अरे नीं, समझावै
आ बाई किण री है,
आ बात बतावै है।