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सुधा को समुद्र तामें, तुरे है नक्षत्र कैधों / आलम

सुधा को समुद्र तामें, तुरे है नक्षत्र कैधों,
                 कुन्द की कली की पाँति बीन-बीन धरी है ।
'आलम' कहत ऐन, दामिनी के बीज बये,
                 बारिज के मध्य मानो मोतिन की लरी है ।
स्वाति ही के बुन्द बिम्ब विद्रुम में बास लीन्हों,
                 ताकी छबि देख मति मोहन की हरी है ।
तेरे हँसे दसन की, ऐसी छवि राजति है,
                 हीरन की खानि मानो, ससी माँहिं करी है ।