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सुधियाँ जैसे बाँह पसारे (गीतिका) / प्रेमलता त्रिपाठी
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घनी उदासी छायी है,कलियाँ मन की खिली सहारे ।
खट्टी मीठी यादों की , सुधियाँ जैसे बाँह पसारे ।
जहाँ तहाँ थमी हुई है,आशाएँ वे कदम भरे पर,
उद्वेलन है लहर लहर,एक चंद्र सौ बार उतारे ।
क्रम यही जीवन के हैं,उठते गिरते आहत सुख कर,
श्वांसों में घुल मिल जाते,अंग अंग हर पोर दुलारे ।
आँसू मोती बन उठते,चलते चलते चरण अनथके
समय समय पर बीते पल,जो दे जाते बड़े इशारे ।
फिर नूतन करने आया,वर्ष बीस उन्नीस हुआ है,
कुछ खोने सब पाने हित,प्रेम जलाकर दीप सँवारे ।