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सुधि करो कहा "क्यों स्नेह-सलिल संकुल तेरे कुवलय लोचन / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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सुधि करो कहा "क्यों स्नेह-सलिल संकुल तेरे कुवलय लोचन ।
क्यों गाढ़ प्रणय-परिरम्भण में होता वपु-प्रसरण-संकोचन ।
कोमल कुंतल के असित अंक में गूंथे तुमने विविध सुमन ।
उमड़ता रहा रसमय परिरम्भित उरज-संपुटित हृद-स्पंदन। "
जुड़ गए परस्पर अनायास हे प्रियतम ! अरुण अधर पल्लव।
प्राणेश हुए मेरे तन के रोमांचित सिंदूरी अवयव ।
उस क्षण की भिखमंगिनी बनी बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥१८