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सुधि करो कहा था प्रिय! तुमने “थी मधुर गीत गा रही प्रिये! / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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सुधि करो कहा था प्रिय! तुमने “थी मधुर गीत गा रही प्रिये!
हमने भी स्वर में मिला दिया स्वर उझक बाँह में बाँह दिये।
तेरे नयनाश्रु-वारि को हमने किया स्वमस्तक का चन्दन।
तव प्रणय-पीर का अगवानी ले किया मृगेक्षणि! अभिनन्दन।
वह गीत-प्रीति-परिरंभ विचुम्बन छवि अधरों पर है टाँकी।
मन-मंदिर से होती न विसर्जित तेरी वह अप्रतिम झाँकी।”
क्यों भूले वह ममता विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥67॥