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सुधि करो प्राण! कहते थे तुम,"बस प्राणप्रिये! इतना करना / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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सुधि करो प्राण! कहते थे तुम,"बस प्राणप्रिये! इतना करना।
तेरी स्मृति में विस्मृत जाये संसृति का जीना-मरना ।
तेरी पीताभ कुसुम-काया मेरे कर-बंधन में झूले ।
तव मलय-पवन-प्रेरित दुकूल लहरा मेरा आनन छू ले ।
गूँथना चिकुर में निशिगंधा की नित तटकी अधखिली कली।
तेरी पायल की छूम्-छननन् ध्वनि ढोती फ़िरे हवा पगली ।"
खोजती निवेदक को विकला बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली ॥47॥