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सुधि करो प्राण! पूछा मैंने ”प्रिय! क्यों हॅंसता है सदा सुमन / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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सुधि करो प्राण! पूछा मैंने ”प्रिय! क्यों हॅंसता है सदा सुमन।
नित अनल-अनिल जल थल में भी प्रतिक्षण रहता है हर्षित मन।
कर अरूण अनावृत अवगुण्ठन-पट पीता अमिय चपल षटपद।
कर पवि-वर्षण पाथोद दलित कर देता उसका किसलय-मद।
फिर भी अनन्त मधु से उसका क्यों पूरित रहता अन्तराल।
नव दम्पति-मिलन-यामिनी शैय्या पर बिछ-बिछ होता निहाल।“
अब ले प्रसून कर भटक रही बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली॥81॥