सुनना / नासिर अहमद सिकंदर
सुनना-
चाय बनाना
हर दिन की सुबह का
पहला संवाद
और-सुनना !
हर दिन के संवाद का
पहला शब्द
हम एक कमरे में भी हों
किसी बात से खफा भी
तो भी नहीं छूटता मुझसे
संबोधननुमा
सुनना ऽ ऽ
और यदि ऐसा हो
एक कमरे में वो
मैं दूसरे में
या बरामदे
या छत पर वो
और पड़े कोई काम
तो भी
पुकार के लिये-सुनना ऽ ऽ ऽ
कभी कभी तो
नाम लेना हो जरूरी
तो भी
सुनना ऽ ऽ ऽ
से हो शुरूआत
ज्यादा से ज्यादा
दुबारा कहना पड़े बस! सुनना ऽ ऽ ऽ
इतनी आदी वो कि चार बैठे हों रिश्तेदार
तो चेहरा उठा
झट उत्तर दे
- बोलो !
सब्जी लेकर
इधर खड़ी रहना तुम
और मैं जगह बदल
हो जाऊं थोड़ी दूर यदि
इस स्थिति में
कोई भी जोर जोर
पुकारे नाम
लेकिन ना !
मैं
वही नाम के लहजे में
सुनना ऽ ऽ ऽ
कभी कभी तो
कहीं बाहर से आऊँ
और वह दरवाजा खोले
सामना हो
और कोई खबर हो
तब भी यही-
सुनना ऽ सिद्दीकी जी का
इंतकाल हो गया
हद तो तब
बैठी हो बगल
या लेटी
तब भी संबोधन-सुनना ऽ
भाषा शास्त्री
नोट करें नई पद्धति
कि सालों-साल
साथ-साथ रहते
कहते-सुनते
क्रिया
बने संज्ञा
व्यक्तिवाचक
जैसे
सुनना ऽ ऽ ऽ
अब
नाम उसका !