भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुनने वाले फ़साना तेरा है / अख़्तर अंसारी
Kavita Kosh से
सुनने वाले फ़साना तेरा है
सिर्फ़ तर्ज़-ए-बयाँ ही मेरा है
यास की तीरगी ने घेरा है
हर तरफ़ हौल-नाक अँधेरा है
इस में कोई मेरा शरीक नहीं
मेरा दुख आह सिर्फ़ मेरा है
चाँदनी चाँदनी नहीं 'अख़्तर'
रात की गोद में सवेरा है