सुनबे बारौ कोउ नाँय, टर्रामें चों / नवीन सी. चतुर्वेदी
"सुनबे बारौ कोउ नाँय, टर्रामें चों"।
ऐसौ कह कें अपनौ जोस घटामें चौं॥
जिन कों बिदरानों है - बिदरामंगे ही।
हम अपनी भासा-बोली बिदरामें चौं॥
ब्रजभासा की गहराई जगजाहिर है।
तौ फिर या कों उथलौ कुण्ड बनामें चौं॥
ऐसे में जब खेतन कों बरखा चँइयै।
ओस-कनन के जैसें हम झर जामें चौं॥
जिन के हाथ अनुग्रह कों पहिचानत नाँय।
हम ऐसे लोगन के हाथ बिकामें चौं॥
मन-रंजन-आनन्द अगर मिलनों ही नाँय।
तौ फिर दुनिया के आगें रिरियामें चौं॥
हम कों गूँगौ-बहरौ थोरें'इ बननौ है।
फोन करंगे - चैटिंग में चिटियामें चौं॥
मनुवादिन सौं जिन कों नफरत है वे लोग।
मनुवादिन कों बेटा-बेटी ब्यामें चौं॥
नाँय नहाए तौ का कछ घट जावैगौ।
द्वारें ठाड़ी लछमी कों बिदरामें चौं॥
अन्य गजल में बतरामंगे बाकी बात।
या कों ही द्रौपद कौ चीर बनामें चौं॥