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सुनहरा चाँद पिघला / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
फिर नदी का रंग बदला
धूप लौटी
देखकर खुश हो रहे जल
पास बैठी
हँस रही चट्टान निश्छल
पूछता - क्या बात
उनसे घाट पगला
नाव पर नन्हीं हवाएँ
गा रहीं हैं
रात भर छायाएँ
पानी में रहीं हैं
छुएँ दिन को
आओ, उनको करें उजला
रेत पर शंखी पड़ी है
ओस ओढ़े
उड़ रहे जलपंछियों के
नये जोड़े
नदी में जैसे
सुनहरा चाँद पिघला