सुनावे मुजकूँ गर कुई मेहरबानी सूँ सलाम उसका / वली दक्कनी
सुनावे मुजकूँ गर कुई मेहरबानी सूँ सलाम उसका
कहाऊँ आख़िर-दम लग बा जाँ मिन्नत ग़ुलाम उसका
अगरचे हस्ब ज़ाहिर में है फ़ुर्क़त दरम्याँ लेकिन
तसव्वुर दिल में मेरे जल्वागर है सुब्ह-ओ-शाम उसका
मुहब्बत के मिरे दावे पे ता होवे सनद मुझकूँ
लिख्या हूँ सफ़्ह-ए-सीने पे ख़ून-ए-दिल सूँ नाम उसका
बरंगे लाला निकले जाम लेकर इस ज़मीं से जम
अगर बख्श़े तकल्लुम सूँ मै-ए-जाँबख्श़ जाम उसका
कुफ़र कूँ तोड़ दिल सूँ दिल में रख कर नीयत-ए-ख़ालिस
हुआ है राम बिन हसरत सूँ जा लछमन सू राम उसका
हुई दी वानगी मजनूँ की यूँ मेरे जुनूँ आगे
कि ज्यूँ है हुस्न-ए-लैला बेतकल्लुफ़-पा-ए-नाम उसका
ज़बाँ तेशे की कर समझे ज़बाँ दूजे फ़सीहाँ की
अगर फ़रहाद दिल जाकर सुने शीरीं कलाम उसका
'वली' देखा जो उस अँखियाँ के साक़ी कन दो जाम-ए-मै
हुआ है बेख़बर आलम सूँ होर ख्व़ाहान-ए-जाम उसका