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सुना करें किस-किस की आहें / त्रिलोचन
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जहाँ राष्ट्र के पेड़ अनेकानेक गिरे थे
आज वहीं से कार राष्ट्रपति की निकली थी,
दो ही लोचन लोचन-वन में घिरे-घिरे थे
भीड़-भाड़ में अतुल त्वरा गति की निकली थी,
कहीं खो गई जो आभा मति की निकली थी,
कानों में संगीत भरा था, वहाँ कराहें
कैसे जातीं । चिट्ठी सी यति की निकली थी
दौड़ रही थी, दौड़ रही थी । दावत चाहें
तो गति कुछ ऐसी हो जिस को देख सराहें
दर्शकजन । दुनिया है, लोग मरा करते हैं,
भला राष्ट्रपति सुना करे किस-किस की आहें
इन आहों से दुर्बल हृदय डरा करते हैं ।
ऐसा हो राष्ट्रपति कि जीमे, फिर डकार ले,
'दुर्घटना से मुझे दुःख है' यह सकार ले ।