भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुनिए राजन / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
सुनिए राजन!
ज़रा सोचिए
अवधपुरी क्यों बिलख रही है
खँडहर हुए महल-दोमहले
गलियारों में श्वान विराजे
टूटा मण्डप जहाँ रात-भर
बजते थे उत्सव के बाजे
सुरज देवता भी
रूठे हैं
हाड़-कँपाती हवा बही है
कहाँ रामजी- कहाँ सिया हैं
पूछ रहा है सरयू का जल
कहीं नहीं दिखतीं गौरइया
हुए सगुनपाखी भी ओझल
सरयू-पार
कुटी साधू की
उसने अंतिम कथा कही है
त्यागी तुमने आन अवध की
बसे अंधनगरी में जाकर
इंद्र हुआ फिर से अपराधी
हुई अहल्या फिर से पत्थर
अगिन हुई है
छाँव समय की
उसमें पूरब दिशा दही है