भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनि ले सहेलिया मोरी, कहै छीहौं हाथ जोड़ी / छोटेलाल दास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

॥चेतावनी॥

सुनि ले सहेलिया मोरी, कहै छीहौं हाथ जोड़ी।
आबि गेल्हौं जीवन के शाम हे॥1॥
तीनां पन बीती गेल्हौं, चौथापन आबि गेल्हौं।
कब भजभे गुरु-हरि नाम हे॥2॥
देह कमजोर भेल्हौं, कमरो भी झुकि गेल्हौं।
होइ गेल्हौं श्वेत सब केश हे॥3॥
अँखियाँ के जोती गेल्हौं, कानो ते बधिर भेल्हौं।
टूटी गेल्हौं मुखवा के दाँत हे॥4॥
पैरो पिराबे लागल्हौं, हाथो-सिर काँपे लागल्हौं।
गिरे लागल्हौं मुख केरो लार हे॥5॥
साधु-संग कैले नाहिं, दान-पुन्न कैले नाहिं।
कैलेनाहिं सत के आचार हे॥6॥
गुरु-गुरु जपो आबे, माया-मोह छोड़ो आबे।
‘लाल दास’ होथौं तब उबार हे॥7॥