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सुनि सुत, एक कथा कहौं प्यारी / सूरदास

सुनि सुत, एक कथा कहौं प्यारी ।
कमल-नैन मन आनँद उपज्यौ, चतुर-सिरोमनि देत हुँकारी ॥
दसरथ नृपति हती रघुबंसी, ताकैं प्रगट भए सुत चारी ।
तिन मैं मुख्य राम जो कहियत, जनक-सुता ताकी बर नारी ॥
तात-बचन लगि राज तज्यौ तिन, अनुज-घरनि सँग गए बनचारी ।
धावत कनक-मृगा के पाछैं, राजिव-लोचन परम उदारी ॥
रावन हरन सिया कौ कीन्हौ, सुनि नँद-नंदन नींद निवारी ।
चाप-चाप करि उठे सूर-प्रभु. लछिमन देहु, जननि भ्रम भारी ॥

भावार्थ :-- (माता ने कहा-) `लाल सुनो! एक प्रिय कथा कहती हूँ ।' यह सुनकर कमललोचन श्याम के मन में प्रसन्नता हुई, वे चतुर-शिरोमणि हुँकारी देने लगे । (माता ने कहा-` महाराज दशरथ नाम के एक रघुवंशी राजा थे, उनके चार पुत्र हुए । उन (पुत्रों) में जो सबसे बड़े थे, उनको राम कहा जाता है; उनकी श्रेष्ठ पत्नी थी राजा जनक की पुत्री सीता । पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये उन्होंने राज्य त्याग दिया और छोटे भाई तथा स्त्री के साथ वनवासी होकर चले गये । (वहाँ वन में एक दिन जब) कमललोचन परम उदार श्रीराम सोने के मृग के पीछे (उसका आखेट करने) दौड़ रहे थे, तब रावण ने श्री जानकी का हरण कर लिया ।' सूरदास जी कहते हैं कि इतना सुनते ही नन्दनन्दन ने निद्रा को त्याग दी और वे प्रभु बोल उठे--`लक्ष्मण! धनुष दो, धनुष!' इससे माता को बड़ी शंका हुई (कि मेरे पुत्र को यह क्या हो गया )।