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सुनीं लेॅ ठहरी केॅ / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
सुनीं लेॅ ठहरी केॅ प्यारी बदरिया।
पनघट सें खालिये घुरले बहुरिया।
पंछी रोॅ कलरव नैं,
गाय गोरू हबगब नैं।
सुन-सुन कछार लागै
लोग वेद जब तब नैं।
सावन केॅ भोर जेनाँ जेठ रोॅ दुपहरिया।
सुनीं लेॅ ठहरी केॅ प्यारी बदरिया।
पनघट सें खालिये घुरले बहुरिया।
धरती में पानी नैं,
निकलै परान।
आकासे निहारै छै,
रोजे किसान।
लबालब भरी जा नदिया, पोखरिया
सुनीं लेॅ ठहरी केॅ प्यारी बदरिया।
पनघट सें खालिये घुरले बहुरिया।