सुनु री ग्वारि ! कहौं इक बात / सूरदास
राग गौरी
सुनु री ग्वारि ! कहौं इक बात ।
मेरी सौं तुम याहि मारियौ, जबहीं पावौ घात ॥
अब मैं याहि जकरि बाँधौंगी, बहुतै मोहि खिझायौ ।
साटिनि मारि करौ पहुनाई, चितवत कान्ह डरायौ ॥
अजहूँ मानि, कह्यौ करि मेरौ, घर-घर तू जनि जाहि ।
सूर स्याम कह्यौ, कहूँ न जैहौं, माता मुख तन चाहि ॥
भावार्थ :-- (व्रजरानी ने कहा-) `गोपी! सुन, तुझसे एक बात कहती हूँ । तुम सबको मेरी शपथ है- जब भी अवसर पाओ, तुम इसे (अवश्य) मारना । इसने मुझे बहुत चिढ़ाया है , अब मैं इसे जकड़कर बाँध रखूँगी । छड़ियों से मारकर इसका आतिथ्य करूँगी ।' (यों कहकर) श्रीकृष्ण की ओर देखते ही कृष्णचंद्र डर गये । माता ने (उनसे कहा) `अब भी मान जा, मेरा कहना कर, तू घर घर मत जाया कर!' सूरदास जी कहते हैं कि माता के मुख की ओर देखकर श्यामसुनदर बोले -`मैया ! मैं कहीं नहीं जाऊँगा ।'