सुनू आब मन जेहन लगैए / कालीकान्त झा ‘बूच’
सुनू आब मन जेहन लगैए-
जिन्दाबाद रहय गयघट्टा,
रानी परती मुँरली छौनी,
कछमछ कऽ कऽ राति बितावी,
बान्हि धोधि पर दनही तौनी,
धन्य हऽम छी फल्लाँ बाबू
जजिमनिके मे क्षुधा जगैए
सुनू आब मन जेहन लगैए
अपना घर मे रखने नहि छी,
कप्प गिलासक फूटलो टुकड़ी,
बहराइछ पावनि तिहार मे
मोरा मूनल गूड़क चुकड़ी
धन्य - धन्य छथि मास्टर साहेब
जेॅ ओ छथि तेॅ चाह चलैए
सुनू आब मन जेहन लगैए
मूड़क नहि परवाहि रहल अछि,
शूलि उठय सूदिक कपचन मे
पाइ पाइ केॅ जोड़ि आइ धरि
सेठ कहयलहुँ एहि जीवन मे
धन्य हऽम छी फल्लाँ बाबू
ओहो धन्य नोत जे दैए
सुनू आब मन जेहन लगैए
बाहर सँ जेहने बलबुतगर,
भीतर सँ तेहने पनिमऽरू,
सज्जन हम जेहने दलानपर
आंगन मे तेहने दुरजऽरू
धन्य हऽम छी फल्लाँ बाबू
बाढ़निये सँ देह झरैए
सुनू आब मन जेहन लगैए
नोन मात्र कीनी दोकान मे
स्ेहो जजिमानी ढ़ेबुआ सँ
मोन पड़य नहि किनने होयब,
हम देहक सूतो देबुआ सँ
धन्य हऽम छी फल्लाँ बाबू
खर्च देखिकऽ मांस गलैए
सुनू आब मन जेहन लगैए
समधिक हाथे देल गेल छल,
हमरो आदर्शक गरदनिया
बेटा मंगनी बिका गेल हम
बनि कऽ रहलहुँ बुरबक बनियाँ
धन्य हऽम छी फल्लाँ बाबू
अखनो रहि-रहि चोन्ह अबैए
सुनू आब मन जेहन लगैए