भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुनेगा बात अपनी चल कोई तो / राज़िक़ अंसारी
Kavita Kosh से
					
										
					
					
सुनेगा अपनी बातें चल कोई तो
मिलेगा दश्त में पागल कोई तो 
सड़क पर कर रही है धूप तांडव 
बरसना चाहिए बादल कोई तो
मिलेगी हौसलों की दाद हमको 
सफ़र नामा पढ़ेगा कल कोई तो 
कोई तो हाल पुछेगा हमारा
करेगा ज़ख्म का टोटल कोई तो
सभी के हाथ में कंकर है लेकिन
मचाए झील में हलचल कोई तो
मेरी दीवानगी पर क़ैस बोला
हमारे बाद है पागल कोई तो
	
	