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सुनो, मेरे बेटे ! / पूजा कनुप्रिया
Kavita Kosh से
मेरे बेटे
क्या दूँ तुम्हें तोहफ़ा
कुछ ऐसा जो
तुम्हारे लिए सदा छाँव रखे
जो वक़्त के साथ मुरझा न जाए
जिस पर धूल न जम जाए कभी
वक़्त के साथ-साथ नयापन खो न दे
जो वचन दे मुझे
उम्र भर साथ देने का
अपनी हदों के पार भी
है क्या कुछ ऐसा
सिवाए
मेरी दुआओं के
जो जीवन भर छाँव बनकर रहेंगी तुम्हारे सिर पर
मेरे निस्वार्थ प्रेम की
जो कभी मुरझाएँगी नहीं
मेरे वात्सल्यके कारण
जिन पर धूल जम न पाएगी कभी
और मेरा आशीर्वाद
जो साथ रहेगा तुम्हारे
अपनी सीमाओं के पार भी
इस संसार में मेरे बाद भी