सुनो, रुको / ज्ञानेन्द्रपति
आन्दोलन कर रहे किसानों के बीच
एक जन की आत्महत्या
स्तब्ध कर जाती है हमें
तीन नए कृषि कानूनों को रद्द कराने के लिए
विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं भारतीय किसान
आन्दोलन के रास्ते पर हैं
और इसलिए उनके लिए बन्द-द्वार दिल्ली तक
पहुँचने वाले रास्तों को ट्रैक्टरों-ट्रालियों
अपने धूप-शीत-सधे शरीरों और
अपने संकल्प की दृढ़ता से जाम कर दिया है उन्होंने
क्योंकि सरकार है कि
उनके लिए बहरी बनी
उन मित्र पूँजीपतियों से कानाफूसी करने में मशगूल है
वस्तुतः जिनके लिए
लाए गए हैं ये कानून
कि देश की और जन-सम्पदाओं की तरह
अब खेती को भी
उनकी तिजारती तिज़ोरी में बन्द किया जा सके
और किसानों को बनाया जा सके उनका बन्धुआ
पूँजीधरों के दूरदर्शी रणनीतिकारों ने
सरकारी थिंक टैंकों ने
नीति-निर्धारकों ने
विचार-व्यवसायियों ने
ठीक-ठीक कूत लिया है
कि फ़ायदे की अकूत सम्भावनाएँ छिपी हैं
इस उपक्रम में
बस, उन्हें खींचकर बाहर निकालना है कड़े हाथों
सो, संगदिल सरकार ने सख़्त तेवर अपनाए हैं
उसका सोचना है कि
कड़ाके की इस सर्दी में
जब रगों में बहते ख़ून की हरारत मन्द पड़ रही हो
खुले आसमान के नीचे
भला कितनी और रातें बिता पाएँगे किसान
राजधानी की घेरेबन्दी ख़त्म कर
अपने गाँव-घरों को लौटने को मजबूर होंगे
जल्द से जल्द
चन्द दिनों के भीतर ही
सो, जल्दी क्या है
गतिरोध जारी रहे
प्रतिरोध पस्त होगा आप-से-आप ही
आन्दोलित किसानों में
बहुतेरे हैं बुजुर्ग किसान
और अनेक ऐसे जिनके पास शीत-युद्ध के लिए
कवचोपम कपड़े कम
प्रायः हर दिन एक न एक
अपनी ज़िन्दगी के घुटने टेक ही देता है
इस विकट मौसम में
और शीतलहर को भी कँपाती शोकलहर
गीली कर जाती है जमावड़े की आँखें
लेकिन यह आत्म-विसर्जन
किसानों के दुख-दर्द से व्यथित यह आत्म-बलिदान
स्तब्ध कर जाता है सबको
वे थे पंजाब के एक गुरुद्वारे में ग्रन्थी
सन्तों की अमृतवाणी से सिंची थी उनकी अन्तरात्मा
किसी की तकलीफ़ उनसे बर्दाश्त न होती थी
और यहाँ तो
ज़ुल्म का पहाड़ टूट पड़ा था अपने लोगों पर
कितना भी ज़ोर लगा कर जिसे वे
टसका तक न सकते थे
ओह ! इसलिए ही
मर्त्यलोक की नागरिकता से त्यागपत्र लिखकर
छोड़ दी उन्होंने जालिमों की दुनिया
जुल्म को धिक्कारते हुए
नाइनसाफी के ख़िलाफ़
जंगजुओं को पुकारते हुए
एक तरह से हाराकिरी सरीखी है यह आत्महत्या
एक योद्धा जिसे चुनता है
लेकिन युद्ध अभी लम्बा है
इस मोर्चे के आगे भी
उसके लिए
देह का मोह छोड़कर
देह के साथ रहना है ज़रूरी
समझते हैं सभी
तब भी उन्हें बताता हूँ
‘आत्महत्या के विरुद्ध’ एक हिन्दी कवि की
किताब का नाम है।
(दिसम्बर, 2020)