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सुनो, सुनो, सुनो ! / उमेश चौहान

पैदा हुए उन्नीस बोरे धान
मन में सज गए हज़ारों अरमान
लेकिन निर्मम था मण्डी का विधान
ऊपर था खुला आसमान
नीचे फटी कथरी में किसान
रहा वह कई दिनों तक परेशान
फिर भी नहीं बेच पाया धान
भूखे-प्यासे गई जान
सुनो, यह दु:ख-भरी दास्तान !
सुनो कि इस देश में कैसे मरता है किसान !

मेरे देश के हुक़्मरानो !
यहाँ के आला अफ़सरानो !
गाँवों और किसानों के नुमाइन्दो !
चावल के स्वाद पर इतराने वाले
छोटे-बड़े शहरों के बाशिन्दो !
सुनो, सुनो, सुनो !
ध्यान लगाकर सुनो !
इस कृषि-प्रधान देश का यह दु:खद आख्यान सुनो !
कि पिछले महीने ओडिशा की मुंडरगुडा मंडी के खुले शेड में
सरकारी ख़रीदी के इन्तज़ार में
भूखे-प्यासे अपने धान के बोरों की रखवाली करने को मजबूर
कालाहांडी के कर्ली गाँव का नबी दुर्गा
कैसे मर गया बेमौत
सुनो, सुनो, सुनो !

लेकिन रुको और गौर से सुनो नेपथ्य की यह आवाज़ भी
कि नबी दुर्गा वास्तव में मरा नहीं, मारा गया
सच को स्वीकारने की इच्छा है तो सुनो !
सुनो, कि वह पीने का पानी खोजते-खोजते
मंडी के पड़ोस वाले घर तक पहुँचकर भी
प्यास से तड़पकर मर गया यह केवल आधा सच है
पूरा सच यही है कि उसे बड़ी बेदर्दी से मार डाला
हमारी गैर-संवेदनशील व्यवस्था ने
मेरी और आप सबकी निर्मम निस्संगता ने ।

यह देश की किसी मंडी का कोई इकलौता ज़ुर्म नहीं था
यह धान को बारिश के कहर से बचाने की
देश के किसी अकेले किसान की जद्दोज़हद नहीं थी
यह देश में सरकारी गल्ला-खरीदी की नाकामी की
कोई अपवाद घटना नहीं थी
यह महानगरों में हज़ारों करोड़ रुपयों के पुल बनाने वाले इस देश में
बिना किसी शेड के संचालित कोई इकलौती मण्डी नहीं थी
यह पेशाबघर, खान-पान और पेयजल की सुविधा के बिना ही स्थापित
देश का कोई अकेला सरकारी सेवा-केन्द्र नहीं था
यह कोई अकेला वाकया नहीं था भारत का
जिसमें किसी सार्वजनिक जगह पर
अपने माल-असबाब की रखवाली करते-करते
भूख और प्यास से मर गया हो कोई इन्सान
नबी दुर्गा की मौत तो बस उसी तरह की लाचारी के माहौल में हुई
जिसमें इस देश में रोज़ बेमौत मरते हैं हज़ारों बदक़िस्मत किसान ।

उस दिन भूख-प्यास से न मरा होता तो
शायद सरकारी ख़रीदारों के निकम्मेपन के चलते
पानी बरसते ही धान के भीगकर सड़ जाने पर मर जाता नबी दुर्गा
या शायद तब,
जब ख़रीद के बाद उसके हाथ में थमा दिए जाते
उन्नीस के बजाय बस पन्द्रह बोरे धान के दाम
या फिर तब,
जब उसे एक हाथ से उन्नीस बोरे धान की क़ीमत का चेक देकर
दूसरे हाथ से वापस रखा लिया जाता
बीस फीसदी नकदी वापस निकाल लिए जाने का चेक
यदि नबी दुर्गा न भी मरा होता मंडी में उस दिन
और उसके साथ बिना बिके ही वापस लौट आए होते उसके धान के बोरे
तो शायद पूरा परिवार ही पीने के लिए मजबूर हो गया होता
खेत में छिड़कने के लिए उधार में लाकर रखी गई कीटनाशिनी ।

सुनो, सुनो, सुनो !
यह दु:ख भरी दास्तान सुनो !
ओडिशा की ही नहीं,
झारखंड, आन्ध्र प्रदेश, बंगाल, असम, बिहार और उत्तर प्रदेश के
लाखों-लाख नबी दुर्गाओं की यह दु:ख-भरी कहानी सुनो !

पानी से भरे खेतों में खड़ी दोपहरी
कतारों में कमर झुकाए धान की रोपाई करती औरतों के
गायन के पीछे छिपी कंठ की आर्द्रता को सुनो !

हमारा पेट भरने को आतुर दानों से लदी
हवा में सम्मोहक खुशबू घोलती
धान की झुकी हुई बालियों की विनम्र सरसराहट को सुनो !

काट-पीटकर सुखाए गए दानों को बोरों में भर-भरकर
ब्याही गई बेटी को विदा किए जाने के वक़्त से भी ज्यादा दु:खी मन से
मण्डी में बेंचने के लिए ले जाते हुए किसानों के मन की व्यथा को सुनो !

धान के बिकने का इन्तज़ार करती
बिस्तर से लगी किसान की बूढ़ी बीमार माँ की
प्रतीक्षा के अस्फुट स्वर को सुनो !
पैरों में चाँदी की नई पायलें पहनने को आतुर
किसान की पत्नी के मन में गूँजती रुन-झुन को सुनो !
महीनों से नया सलवार-सूट पहनने की आस लगाए बैठी
किसान की बेटी के दिल की हुलकार को सुनो !

चलो, अब पूरी संजीदगी से इन नबी दुर्गाओं से क्षमा माँगते हुए
और इस देश के किसी किसान को नबी दुर्गा न बनना पड़े
इसकी व्यवस्था सुनिश्चित कराने की लड़ाई लड़ने का संकल्प लेते हुए
इस दु:ख भरी दास्तान को बार-बार सुनो !