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सुनो गउअन की अरज मुरारी हो मोरी प्रभु कीजिये सहाय / बुन्देली
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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सुनो गउअन की अरज मुरारी हो मोरी प्रभु कीजिये सहाय।
बम्बई कलकत्ता औ झाँसी मक्का औ मदीना कासी
लगतीं जाँ गउअन की फाँसी जहाँ हो रये हैं कत्ल अपार हो
मोरी प्रभु...
मोरे गोबर कामें आवै दूध से पित्त शान्त हो जावै
घीव सें कमजोरी कम जावै इन तीनों सें जीवें सकल नर नारी हो।
मोरी प्रभु...
बछड़ा दाँये हर में जुताई इनकी खाई खूब कमाई
बेचन ले गये मोल कसाई उनकी गरदन छुरी चलाई
वे तो रोवत हैं अँसुअन ढार हो।
मोरी प्रभु...
हिन्दू मुसलमान औ इसइया मोरे कोउ नई हैं रखवइया
मो कों भारत रोज कसइया डूबत अब भारत की नैया
दैया मैया दीन तुम्हार हो।
मोरी प्रभु कीजिये सहाय हो।