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सुनो जी सुनो, हमारी भी सुनो / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
सुनो जी सुनो, हमारी भी सुनो
अजी मेहरबान, हमारी भी सुनो
ना टप्पा ना ठुमरी, ग़ज़ल है ना कजरी
ये रागिनी है प्यार की
सुनो जी सुनो, हमारी भी सुनो
तराना हमारा, ज़माने से न्यारा
हर एक सुर में दिल है धड़कता हुआ
हर एक बोल प्यारा, कि जैसे सितारा
अकेला गगन में चमकता हुआ
सुनो जी सुनो, हमारी भी सुनो …
इशारों में बोलूँ, ज़ुबाँ भी न खोलूँ
निगाहों से कह दूँ, समझ लो अगर
न ये बेख़ुदी है न दीवानगी है
मुझे तो लगी है तुम्हारी नज़र
सुनो जी सुनो, हमारी भी सुनो …
सुनो मेरे जी की, मेरी आरज़ू थी
तमन्ना यही थी की तुम हो क़रीब
ये चिलमन हटा दो, वो झलकी दिखा दो
कि अब तो जगा दो हमारे नसीब
सुनो जी सुनो, हमारी भी सुनो …
1962