भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनो भाई साधो / गोरख पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
माया महाठगिनि हम जानी,
पुलिस फौज के बल पर राजे बोले मधुरी बानी,
यह कठपुतली कौन नचावे पंडित भेद न पावें,
सात समन्दर पार बसें पिय डोर महीन घुमावें,
रूबल के संग रास रचावे डालर हाथ बिकानी,
जन-मन को बाँधे भरमावे जीवन मरन बनावे,
अजगर को रस अमृत चखावे जंगल राज चलावे,
बंधन करे करम के जग को अकरम मुक्त करानी,
बिड़ला घर शुभ लाभ बने मँहगू घर खून-पसीना,
कहत कबीर सुनो भाई साधो जब मानुष ने चीन्हा,
लिया लुआठा हाथ भगी तब कंचनभृग की रानी.

(विद्रोही संत कवि से क्षमा-याचना सहित)