यहाँ जटायू फिर चिल्लाया 
सुनो राम जी ! 
कब आओगे ?
युग बदला है 
लोग धरा पर 
हैं बदले बदले 
घर - घर में अब सुग्रीवों को 
बाली रोज़ छले
जज है बाली का हमसाया 
सुनो राम जी ! 
कब आओगे ?
जिसको मैं 
सोचूँ रघुनन्दन, 
रावण वह निकले 
सबरी के बेरों को अपने 
पैरों से कुचले
सरयू पर केवट घबराया 
सुनो राम जी !
कब आओगे ?
रोज़ दशानन 
पैदा होते 
रघुवंशी घर में 
चुपके से वे अब विराजते 
बहुतों के उर में
रामराज्य पर काला साया 
सुनो राम जी ! 
कब आओगे ?