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सुनो राम जी! कब आओगे ? / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
यहाँ जटायू फिर चिल्लाया
सुनो राम जी !
कब आओगे ?
युग बदला है
लोग धरा पर
हैं बदले बदले
घर - घर में अब सुग्रीवों को
बाली रोज़ छले
जज है बाली का हमसाया
सुनो राम जी !
कब आओगे ?
जिसको मैं
सोचूँ रघुनन्दन,
रावण वह निकले
सबरी के बेरों को अपने
पैरों से कुचले
सरयू पर केवट घबराया
सुनो राम जी !
कब आओगे ?
रोज़ दशानन
पैदा होते
रघुवंशी घर में
चुपके से वे अब विराजते
बहुतों के उर में
रामराज्य पर काला साया
सुनो राम जी !
कब आओगे ?