सुनो सुनो क्या कहती हैं लहरें / गीता शर्मा बित्थारिया
बैठ किनारे सागर के देखा है अक्सर मैनें
आती जाती उठती गिरती लहरों को
कभी छोटी कभी बड़ी बन कर आती हैं
नित निरंतर अपनी ही सीमायें छूने को
समेट ले जाना चाहती हैं जो कुछ भी
छूट गया था पीछे को
देख रहीं हैं मुझे झिझकी सिमटी सी बैठी अपने ही दायरे में
हाथ पकड़ ले जाती मुझ को अपनी ही गहराई में
सागर सा विस्तार पा विस्मित चहक उठी एक नदी सी
लो अब मैं भी बन जाती हूँ उत्तान्ग लहर एक ऊंची सी
तुम अभी तक किनारे पर ही क्यों बैठे हो गुमसुम से
निर्लिप्त भाव से किसी चट्टान के जैसे जमे हुए
मैं लहर बन कर आती हूँ तुम तक तुम को छूकर ले जाने
भिगो देना चाहती हूँ हर बार तुम्हें अपनी सी उमन्गों से
कब तक यूँ ही सुखे हुए से बैठे रहना है
अकेले ही किनारे पर निर्विकार से चुपचाप
आओ चलें जल सिंधु में होकर लहरों पर सवार
चलो लहरों की नाव पर नौकायन कर लें एक बार
चलो उगते सूरज की मीठी सी लालिमा चख लें
पता लगायें कैसे भरता है बादल पानी मिल धूप के साथ में
कैसे रात हुई तो डूबा सूरज चांदनी ओढ कर बैठ गया
देखो कैसे दौड़ा है चाँद तारों को लेकर अपनी झोली में
सुबह हुई तो मछुआरों ने अपने जाल बिछाये दिये हैं
गाते माँझी ने भी साहस के चप्पू साध लिये है
रात हुई तो कोई नाविक तारों से रस्ता पूछ रहा है
कोई तो मंझधार से ही दूर किनारा ताक रहा है
बच्चे गुब्बारों को देख फूले नहीं समाते हैं
योगी भी एकांत पाकर यहाँ ध्यान लगाते हैं
प्रेमी जोडे बैठे हैं दुनिया से छिपके कोने में
कोई अपना एक घरोंदा बना रहा है गीली रेत में
कुछ लड़कियाँ सीपी चुनती हैं माला में पिरोने को
वाद्ययंत्रों की धुन पर लड़के झूमें नृत्य की मस्ती में
देखो इधर तो रागी वैरागी मस्त धूप पान कर लेटे हैं
कुछ बुजुर्ग टहल रहे हैं उधर सुस्त सुस्त से कदमों से
झूम रहे वृक्षों पर बांध रस्सियाँ आओ हम भी झूला झूले
फैला के अपनी बांहे सूरज का अभिनंदन बंदन कर लें
भर लें अपनी सांसों को बहती तेज हवा के झोकों से
चलो क्षितिज की सीढ़ी चढ़ विहान तक सैर कर लें
सुनो सुनो क्या कहती हैं ये आती जाती लहरें
लहरें ही बने रहना हैं हमको तूफान नहीं बनना
सृजन-यात्रा के साक्षी हों विध्वंस के भागी नहीं
ताकि हमेशा बचे रहें
मछुआरों के जाल
माँझी के कण्ठ में गीत
नाविकों की सागर से मैत्री
योगियों की साधना
बच्चों के हाथों में गुब्बारे और चुने शंख
आलिंगनबद्ध प्रेमी युगल
उम्मीदों के घरौंदे
लड़कियों के गले में मोतियों की माला
नृत्य पर थिरकते लड़कों के पदचाप
और बुजुर्गो के पद चिन्हों की छाप
लहरों को बातें करते देखा है कभी
हर दिन हर पल
लहरों की यात्रा
उगते सूरज से
ढलती शाम तक
फिर अगली सुबह होने तक
वो बचाना चाहती हैं
एक प्यार भरा संसार