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सुनो हे बहिना भोरे उठियो / रघुनन्दन 'राही'

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सुनो हे बहिना भोरे उठियो, सद्गुरु मानो कहना।
सौच-सफाई आलस त्यागी, निसि दिन धरियो धरना॥
काया नगरिया बड़ा ही सुन्दर, जामें बिराजै दिल मोहना।
गुरु-ज्ञान सें पैठि गगन में, पिया से होबै मिलना॥
कोठा ऊपर कोठा शोभै, जामें पिया के पलना।
सुरत-कुंज से खोल केवरिया, एकटक दोनों नयना॥
पैसि महलिया देखो नयन सें, अद्भुत रूप क्या कहना।
सुनो सुरत में ख्याल लगाके, पिया पुकारै पलना॥
शील संतोष की चुनरी लेइ, सदाचरण के गहना।
जन ‘रघुनन्दन’ पिया सें भेटो, युग-युग सुहागिन रहना॥