सुन्ता के सुघ्घर निसैनी बनावव / ध्रुव कुमार वर्मा
थोड़ बहुत आमदनी
अड़बड़ खवइय्या।
कइसे के गूजर
चलाबो रे भइय्या।
भरका असन मुँह हावै,
नानक हे कौरा।
हाथ भर के नेती अऊ
बड़े जनिक भौरा।
छोटे में बड़े ला
कईसे घटाबो।
जांगर ले जादा ला
कइसे उठाबो।
हमन ला धरे रइथे,
निशदिन अढ़इया॥1॥
चंदा में चलत हे,
डोकरी के रहटा।
ऐती में कोड़त हंव
खेती ला पहटा।
कोन जनी, कोन दिन ते
गाड़ा हा आही
डोकरी हा रहटा ला,
अनते मड़हाही।
दूध असन मिलही कब
पेट भर पसइय्या॥2॥
धरती ल बांट डरिन
अपन अपन पुरती।
लुगरा ला काट नानक
खील डरिन कुरती।
हाथी ला छेंकव,
मत चांटी ला खूदय।
जयद्रथ चंडाल
झन बेरा ला मूंदय।
कोनो तो आवव गा
धनुष टोरइय्या॥3॥
रुपिया अस बादर में
बगरे चंदैनी।
चढ़े बर ऊंहा तक
नईए निसैनी।
खांध ऊपर चढ़-चढ़ के
ऊंहा तक जावव
सुन्ता के सुघ्घर
निसैनी बनावव।
अकेल्ला खाबे झन
बोइर बिनइय्या॥4॥