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सुन्दरता / केशव
Kavita Kosh से
शब्द
हो जाते हैं नष्ट
सुन्दरता बनी रहती है
शब्दों से पकड़ने के लिए जिसे
खोजने पड़ते हैं
और-और शब्द
फिर भी
शब्द पकड़ नहीं पाते
उस अपलक दृष्टि को
जो सुन्दरता को
फूलों लदी नाव की तरह
बहने देती है भीतर
चुपचाप
ऐसे ही क्या
नहीं ले आते शब्द
मेरे निकट तुम्हें
दब जाते हैं फिर
ख़ामोशी की चट्टान तले
रह जाती हो
तुम
केवल मात्र तुम
मेरे पास----
कभी खामोश ज्वालामुखी की तरह
कभी
लहरों से भीगती तट की तरह
कभी
अभी-अभी फूटी कोंपल की तरह
और कभी
धूप के उस उजले समुद्र की तरह
जिसमें हम
नतमस्तक हो
फैल जाते हैं मौसम की तरह
अनंत विस्तार में