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सुन्दरता / रणजीत

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सुन्दरता भी प्रकृति का कितना बड़ा वरदान है
इसके आगे कितनी फीकी नर की झूठी शान है
राह के चारों तरफ खुशियाँ लुटाती यह चले
मोती लुटाता मानसर का हंस ही उपमान है।